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मीडिया और बाजारवाद

सं. रामशरण जोशी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13549
आईएसबीएन :9788171197569

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मानव समाज भाव से नहीं चल सकता, मूल्य से ही चल सकता है

बाजार नाम की संस्था आदिम समाज के लिए भी रही है, और आज के समाज के लिए भी है। इसलिए बाजार से बैर करके आप अपना समाज और अपना जीवन चला सकें, इसकी सम्भावना नहीं है। लेकिन जब बाजार मनुष्य की नियति तय करे तो इसका मतलब यह है कि अब तक जो मनुष्य का सेवक रहा है, वह मनुष्य का मालिक होना चाहिए। बाजार मनुष्य का बहुत अच्छा सेवक है। कोई पाँच हजार साल से उसकी सेवा कर रहा है। शायद उससे भी ज्यादा वर्षों से कर रहा हो। अगर वो मनुष्य की नियति तय करेगा तो उसमें एक मूल खोट आनेवाला है, क्योंकि बाजार भाव से चलता है, बाजार मूल्य से नहीं चलता और मूल्यों के बिना किसी भी मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। मानव समाज भाव से नहीं चल सकता, मूल्य से ही चल सकता है। मानव समाज को मूल्य से चलना है। अब जो बाजार की शक्तियाँ दुनिया में इकट्ठा हुई हैं उससे आप कैसे निपटेंगे ? मुझे कई लोगों ने कहा कि यह तो हिन्दुस्तान है जो जाजम की तरह बिछने के लिए तैयार है, नहीं तो जहाँ-जहाँ बाजार गया है वह उस देश के समाज की शर्तों पर गया है। पर हमने एक कमजशेर देश की तरह से अन्तरराष्ट्रीय बाजार को स्वीकारा है। इसलिए अब हमारे यहाँ जाजम की तरह बिछ जाने का लगभग कुचक्र चल रहा है !

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